नई दिल्ली। हिंदी सिनेमा विलेन के बिना अधूरी हैं। बॉलीवुड में साल 1960 से लेकर अब तक कई कलाकारों ने फिल्मों में खलनायक का किरदार अदा किया है। लेकिन उनमें से कुछ ही कलाकार हैं जिनकी अदाकारी ने लोगों अपनी दिवाना बनाया हो। ऐसे ही एक कलाकार थे अजीत खान (Actor Ajit Khan) । अजीत हिंदी सिनेमा के इकलौते ऐसा विलेन थे जो हमेशा सौम्य नजर आते थे । आज अजीत थान की बर्थ एनिवर्सरी (Ajit Khan Birthday Special) है। 27 जनवरी 1922 को जन्मे अजीत खान ने 22 अक्टूबर 1998 में हैदराबाद में अंतिम सांस ली। अजीत जब पैदा हुए तो उनके माता पिता ने उनका नाम हामिद अली खान रखा था। लेकिन जब वे बॉलीवुड की दुनिया में आए तो एक अजीत खान के नाम से आए।
अजीत बचपन से ही हीरो बनने के शौक था लेकिन उनके घर वाले उनको ये काम नहीं करने देना चाहते थे। जिसके चलते वे घर से भागकर मुंबई आ गए थे। घर तो छोड़ दिया था लेकिन ना उनके पास कोई काम था ना ज्यादा पैसा। जिसके बाद पेट पालने के लिए उन्होंने छोटे मोटे काम करने शुरू कर दिए।साल 1940 में अजीत ने अपने सपने को साकार करने का रास्ता मिल गया। वे हीरो बन गए। कई फिल्में की लेकिन सब की सब फ्लॉप। जिसके बाद वे विलेन बन गए।
अजीत केवल फिल्मों में ही विलेन नहीं थे। जब वे मुंबई आए थे तो उनके पास रहने का कोई ठिकाना नहीं था। तो वे काफी वक्त तक नालों की पाइपों में रह कर अपना समय बिताया।उन दिनों लोकल एरिया के गुंडे उन पाइपों में रहने वाले लोगों से पैसा लेते थे। जो पैसा देता था वो रहता था जो नहीं देता उसे पीट कर भगा देते। एत दिन गुंडे अजीत के पास पैसे लेने आए। उन्हें धमकाने लगे की पैसे दो वर्ना मार देगें। अजीत को गुस्सा आ गया। और उन्होंने गुंड़ो को पीट दिया।ऐसा करके वो खुद गुंडा बन गए।आस पास के लोग उनसे डरने लगे डर की वजह से उन्हें खाना-पीना मुफ्त में मिलने लगा और रहने का भी बंदोबस्त हो गया।
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अजीत ने 200 से अधिक फिल्मों में काम किया है, जिनमें से ज्यादातर वो विलेन ही थे।अजीत ने तो वैसे कई फिल्मों में काम किया लेकिन उनको असली पहचान साल साल 1976 में रिलीज हुई फिल्म कालीचरण से मिली। इस फिल्म में उनका डायलॉग ‘सारा शहर मुझे लॉयन के नाम से जानता है। और, इस शहर में मेरी हैसियत वही है, जो जंगल में शेर की होती है।' ने हिंदी सिनेमा का लॉयन बना दिया
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